धनतेरस कब है 2024 (कथा,पूजा,मुहूर्त,महत्व एवम कहानी)

धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी एवम धन्वंतरी देवता की पूजा की जाती हैं. यह पर्व दीपावली के दो दिन पहले मनाया जाता हैं. लक्ष्मी जी एवम धन्वन्तरी दोनों का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था. इस दिन इनके साथ कुबेर देवता एवम यमराज की पूजा की जाती हैं. कहा जाता हैं इस दिन दक्षिण दिशा में दीप दान करने से अकाल मृत्यु का योग ख़त्म होता हैं. धनतेरस के दिन चांदी एवम अन्य नये बर्तन खरीदने की प्रथा भी हैं, इन सब प्रथाओं के पीछे कई पौराणिक कथायें कही गई हैं.

धनतेरस कब मनाई जाती हैं (Dhanteras 2024 Date Muhurat)

यह कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की तेरस के दिन मनाई जाती हैं. इस दिन कुबेर, लक्ष्मी, धन्वन्तरी एवम यमराज का पूजा की जाती हैं. यह दिन दीपावली के दो दिवस पूर्व मनाया जाता हैं. इसी दिन से दीपावली महापर्व की शुरुवात होती हैं.

धनतेरस 2024 तारीख

दृक पंचांग के अनुसार, इस साल धनतेरस के लिए जरूरी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 10 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होगी. इस तिथि का समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर होगा. इस साल धनतेरस का पर्व 29 अक्टूबर मंगलवार को है.

धनतेरस के दिन बर्तन एवम चांदी खरीदने की प्रथा (Dhanteras Pratha):

धन्वंतरी हाथ में कलश लेकर जन्मे थे, चूँकि वह कलश महान अमृत का बर्तन था, इसलिए इस दिन घरों में नये बर्तन खरीदने का भी चलन हैं.

खासतौर पर इस दिन चांदी खरीदी जाती हैं. इसके पीछे का मान्यता हैं कि इस दिन धन की देवी की पूजा की जाती हैं. यह पूजा धन प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती हैं. कहते हैं धन देने से पहले मनुष्य को बुद्धिमता विकसित करना चाहिये. अपने तन मन को शीतल करना चाहिये. इसलिए इस दिन चन्द्रमा जो शीतलता देता हैं का प्रतीक कहे जाने वाली धातु चांदी खरीदी जाती हैं. इस प्रकार धनतेरस के दिन बर्तन एवम चांदी खरीदने की प्रथा हैं. इस प्रकार अब आधुनिक युग में इस दिन मनुष्य को जो भी खरीदना होता है, उसे लक्ष्मी पूजा के महत्व के रूप में खरीदते हैं.

धनतेरस का महत्व (Dhanteras Mahtava)

कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धन्वंतरी देवता का जन्म हुआ था, इनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था और ये अमृत कलश लेकर जन्मे थे, जिसके लिए इतना भव्य समुद्र मंथन किया गया था. इसी समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का भी जन्म हुआ था. धन्वन्तरी के जन्म के कारण ही इसका नाम धनतेरस पड़ा. धन्वंतरी देवो के वैद्य हैं इस कारण इस दिन आयुर्वेद दिवस भी कहा जाता हैं.

धनतेरस  कथा (Dhanteras  Story)

पौराणिक युग में हेम नाम के एक राजा थे, उनकी कोई सन्तान नहीं थी. बहुत मानता मानने के बाद देव गण की कृपा से उनको पुत्र की प्राप्ति हुई. जब उन्होंने पुत्र की कुंडली बनवाई तब ज्योतिष ने कहा इस बालक की शादी के दसवे दिन इसकी मृत्यु का योग हैं. यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी ना करने का निश्चय किया और उसे एक ऐसी जगह भेज दिया जहाँ कोई स्त्री न हो. लेकिन तक़दीर के आगे किसी की नहीं चलती. घने जंगल में राजा के पुत्र को एक सुंदर कन्या मिली, जिससे उन्हें प्रेम हो गया और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया. भविष्यवाणी के अनुसार पुत्र की दसवे दिन मृत्यु का समय आ गया. उसके प्राण लेने के लिए यमराज के दूत यमदूत पृथ्वीलोक पर आये. जब वे प्राण ले जा रहे थे तो मृतक की विधवा के रोने की आवाज सुन यमदूत के मन में भी दुःख का अनुभव हुआ, लेकिन वे अपने कर्तव्य के आगे विवश थे. यम दूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुँचे, तो बेहद दुखी थे, तब यमराज ने कहा दुखी होना तो स्वाभाविक है, लेकिन हम इसके आगे विवश हैं. ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा कि हे राजन क्या इस अकाल मृत्यु को रोकने का कोई उपाय नहीं हैं ? तब यमराज ने कहा कि अगर मनुष्य कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन कोई व्यक्ति संध्याकाल में अपने घर के द्वार पर एवम दक्षिण दिशा में दीप जलायेगा, तो उसके जीवन से अकाल मृत्यु का योग टल जायेगा. इसी कारण इस दिन यमराज की पूजा की जाती हैं.

 

धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजा विधि का महत्व (Dhanteras Laxmi Puja Vidhi Mahatva) :

इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती हैं. इसके पीछे भी एक कथा हैं. एक भगवान विष्णु ने भूलोक के दर्शन करने की सोची. तब देवी लक्ष्मी ने भी साथ चलने की इच्छा ज़ाहिर की तह विष्णु जी ने उनसे कहा आप साथ आ सकती हैं, लेकिन मैं जैसा बोलूँगा आपको वैसा करना होगा, तब ही साथ चले. देवी को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, उन्होंने शर्त मान ली. दोनों ही भूलोक दर्शन के लिए निकल पड़े. तब ही विष्णु जी ने दक्षिण दिशा की तरफ अपना रुख किया और देवी लक्ष्मी से कहा कि देवी आप मेरे पीछे न आये यहीं रहकर मेरा इंतजार करें. उनके जाने के बाद माता लक्ष्मी के मन में ख्याल आया कि आखिर क्यूँ उन्हें इंतजार करने को कहा उन्हें जाकर देखना चाहिये, ऐसा सोचकर वे विष्णु जी के पीछे- पीछे चली गई.लक्ष्मी जी दक्षिण की तरफ बढ़ने लगी, तब ही उन्हें हरे भरे खेत दिखे जिसमे कई फूल भी लगे थे, उन्होंने कुछ फूल तोड़ लिए आगे बड़ी तो गन्ने एवम भुट्टे के खेत थे, उन्होंने वे ही तोड़ लिए.

कुछ समय बाद उन्हें विष्णु जी मिल गये, उन्हें पीछे आटा देख वे क्रोधित हो गये और हाथ में रखे फुल एवम फलों के बारे में पूछा, कि यह किसने दिये तब लक्ष्मी जी ने कहा, ये तो मैंने स्वयं के लिए तोड़े है, तब विष्णु जी को क्रोध आया और उन्होंने कहा तुमने किसान के खेत से चोरी की है, तुम्हे पीछे आने को मना किया था, तुम नहीं मानी और पाप की भागी बनी. अब तुम्हे प्रयाश्चित के रूप में उस किसान के घर 12 वर्षो तक रहना होगा और उसकी सेवा करनी होगी. ऐसा बोल विष्णु उन्हें छोड़ कर चले गये.

बारह वर्षो तक लक्ष्मी जी ने किसान के घर के सभी काम किये लक्ष्मी के घर रहने के कारण किसान की संपत्ति कई गुना बढ़ गई, तब ही वह दिन आया जब 12 वर्ष पुरे होने पर विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने आये, पर किसान ने भेजने से ना बोल दिया. तब विष्णु जी ने कहा यह धन की देवी हैं ऐसे ही मनुष्य के घर में नहीं रह सकती, यह तो प्रायश्चित के कारण यहाँ थी. फिर भी किसान नहीं माना. तब लक्ष्मी जी ने कहा कि अगर मनुष्य जाति प्रति कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस को घी के दीपक जलाकर अपने घर को स्वच्छ कर सायंकाल मेरी पूजा करेंगे, तो मैं अदृश्य रूप से पुरे वर्ष उनके घर में निवास करुँगी, तब ही से धनतेरस के दिन लक्ष्मी के पूजन का महत्व पुराणों में बताया गया हैं. 

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