हर एक उपवास के पीछे पौराणिक कथा होती है, जो हमें सीख देती हैं एवम धर्म का मार्ग दिखाती हैं. पश्चाताप का भाव देती हैं और उनसे बाहर निकलने का मार्ग भी सिखाती हैं.
चार माह के त्यौहारों का महत्व पुराणों में मिलता हैं. सभी धर्मो में इन चार महीनो में कई धार्मिक उत्सव होते हैं. हिन्दू धर्म में उपवास एवम सात्विक पूजा पाठ को अधिक माना जाता हैं. घर की महिलायें परिवार के सुख के लिए कई रीती रिवाज मानती और उन्हें पूरा करती हैं. इसी श्रद्धा के साथ मातायें अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं. यह व्रत भी परिवार के कल्याण एवम समृद्धि के लिए किया जाता हैं.
अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami 2024 Vrat) का व्रत महिलाओं के द्वारा संतान की सलामती और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने संतान से जुड़ी समस्या से छुटकारा मिलता है। साथ ही संतान को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।अहोई अष्टमी की पूजा के दौरान पति-पत्नी को साथ में मिलकर देवी-पार्वती की पूजा करनी चाहिए और सफेद फूल अर्पित करना चाहिए। इसके बाद रात में तारों को अर्घ्य देकर फिर से पूजा करें। ऐसा करने से आपकी संतान को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष पर की अष्टमी तिथि पर किया जाता है। इस बार यह व्रत गुरुवार, 24 अक्टूबर के दिन पड़ रहा है।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त (Ahoi Ashtami Vrat Timing)–
पूजा का समय – |
शाम 05:42 से 06:59 |
अष्टमी तिथि शुरू होगी – |
24 अक्टूबर 01:18 AM |
अष्टमी तिथि ख़त्म होगी – |
25 अक्बटूर 01:58 AM |
अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय – |
05:58 PM |
अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Story):
बहुत समय पहले साहूकार था. उसके सात पुत्र एवं एक पुत्री थी. दीपावली समीप था. घर की साफसफाई पूरी करना था, जिसके लिए रंग रोंगन करना था, जिसके लिए साहूकार की पुत्री जंगल गई मिट्टी लाने उसने कुदाली से खोद कर मिट्टी ली. खोदते समय उसकी कुदाली स्याह के बच्चे को लग गई और वो मर गया. तब ही स्याह ने साहूकार के पुरे परिवार को संतान शोक का श्राप दे दिया, जिसके बाद साहूकार के सभी पोत्रो की मृत्यु हो गई, इससे सभी मातायें विचलित थी. साहू कार की सातों बहुयें एवम पुत्री समस्या के निवारण के लिए मंदिर गई और वहाँ अपना दुःख देवी के सामने विलाप करते हुए कहने लगी. तब ही वहाँ एक महात्मा आये, जिन्होंने उन सभी को अहोई अष्टमी का व्रत करने को कहा. इन सभी ने पूरी श्रद्धा के साथ अहोई अष्टमी का व्रत किया, जिससे स्याही का क्रोध शांत हुआ और उसके खुश होते ही उसने अपना श्राप निष्फल कर दिया, इस प्रकार आठों स्त्रियों की संतान जीवित हो गई.
अहोई अष्टमी व्रत कथा
इस प्रकार इस व्रत का महत्व में संतान की सुरक्षा का भाव निहित होता हैं :
अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि (Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi):
- प्रातः जल्दी स्नान किया जाता हैं.
- इसमें दिन भर का निर्जला व्रत किया जाता हैं.
- शाम में सूरज ढलने के बाद अहोई अष्टमी की पूजा की जाती हैं.
- इसमें अहोई अष्टमी माता का चित्र बनाया जाता हैं और विधि विधान से उनका पूजन किया जाता हैं.
- चौक बनाया जाता हैं. इस पर चौकी को रख उस पर अहोई माता एवम सईं का चित्र रखा जाता हैं.
- सर्वप्रथम कलश तैयार किया जाता हैं. गणेश जी की स्थापना की जाती है, इनके साथ ही अहोई अष्टमी माता का चित्र रखा जाता हैं.
- आजकल बाजारों में यह चित्र मिल जाता हैं.
- पूजा के बाद कुछ मातायें जल एवम फलाहार ग्रहण करती हैं.
- इस दिन कई स्त्रियाँ चांदी की माता बनाती हैं पूजा के बाद इन्हें माला में पिरो कर धारण करती हैं.
- इस माला को दिवाली के बाद उतारा जाता हैं और बड़ो का आशीष लिया जाता हैं.
अहोई अष्टमी माता बच्चो की सुरक्षा करती है, सदैव उनके साथ होती हैं इसलिए मातायें इनकी पूजा करती हैं. यह व्रत कार्तिक माह में आता हैं इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं.
हिन्दू समाज में महिलायें परिवार के लिए कई रीती रिवाज करती हैं इससे परिवार में शांति एवम खुशहाली बनी रहती हैं. आज के समय में महिलायें भी बहुत व्यस्त हो गई हैं ऐसे में सभी रीती रिवाज कर पाना कठिन हो जाता हैं. और इस तरह से उपवासों का करना सेहत पर भी गलत प्रभाव डाल सकता हैं, लेकिन श्रद्धा के साथ जो भी इस कलयुग में ईश्वर भक्ति करेगा, उसे ईश्वर की कृपा अवश्य मिलेगी.